16 अक्तूबर 2010

अभिव्यक्ति

किसे नहीं होती 
चाह अभिव्यक्ति की 


बीज विटप बन 
अभिव्यक्त ही तो होता है.
मंजुल  पुष्पों के रूप में 
 डालियों पर
 अपनी अभिव्यक्ति ही तो पिरोता है. 


कोयल की कुहुक में भी तो 
झांकती है उसकी अभिव्यक्ति ही 
यही अभिव्यक्ति है
 उसके जीवन की शक्ति भी.


यही अभिव्यक्ति
नदियों, झरनों का मधुर गान है.
ईश्वर की सृष्टि का 
अनुपम वरदान है.


सो अभिव्यक्त करो तुम भी स्वयं को 
मत रहो उहापोह में,
देखो, जीवन सुरमय है
आरोह में हो या अवरोह में.