हर कोई चाहता है कि उसकी भी कोई अपनी पहचान हो. आज के समाज में नारी के सन्दर्भ में यह बात और भी जरूरी हो जाती है. अस्मिता की तलाश में ही......
10 दिसंबर 2011
15 अगस्त 2011
स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
भारत के वीर सपूतों को रणधीरों को!
देश की रक्षा हेतु जिन्होंने गले लगाया
तोपों ,बन्दूकों को और शमशीरों को
देश की रक्षा हेतु जिन्होंने गले लगाया
तोपों ,बन्दूकों को और शमशीरों को
देश-प्रेम हित तज कर आते लगन का मंडप
भूल जाते हैं अपनी सोहनियों , हीरों को.
द्रास, कारगिल या सियाचिन की हो सीमा
करने न देते पार किसी को लकीरों को
स्वयं विधाता आप बैठ कर लिखता है
स्वर्ण अक्षरों से उनकी तकदीरों को.
कोटि-कोटि प्रणाम देश के वीरों को
भारत के वीर सपूतों को रणधीरों को!
5 मई 2011
गज़ल
धीरे धीरे तुम्हें भुलाना सीखेंगे .
अपने मन को भी समझाना सीखेंगे.
पढ़ पाए न कोई खुली किताबों सा
चेहरे का हर भेद छुपाना सीखेंगे.
तुम भी करवट बदल बदल के रात बिताओ
हम भी तेरी नीद उड़ाना सीखेंगे.
तुम्हे दिखायेंगे न मन के ताने बाने
खुद अपनी उलझन सुलझाना सीखेंगे.
बहुत सजाये 'पूनम' पलकों पे मोती
अब होठों पे चाँद सजाना सीखेंगे.
21 मार्च 2011
16 फ़रवरी 2011
क्या नारी स्वतन्त्र है ?
तुम्हें क्या लगता है?
नारी वास्तव में स्वतन्त्र है !
बंदी नहीं?
सच कहो
क्या आज भी
उस की सोच पे पाबन्दी नहीं?
आज भी
कहाँ उकेर पाती है
वह मन के उद्गार.
छीन लेते है वहीँ
उसकी तूलिका, उसकी लेखनी
उस के अपने मन के संस्कार.
और कभी स्व से संघर्ष कर निरंतर
वह अगर जीत भी जाती है,
तो इस तथाकथित प्रबुद्ध
और सुसभ्य समाज को
वह आँख की किरकिरी सी नज़र आती है.
समाज का पुरुषवादी अहम
उसकी यह परिवर्तित चेतना
नहीं कर पाता है स्वीकार
इसीलिए शायद इसीलिए
स्वयं से जीत कर भी
नारी अस्मिता जाती है हार
बार-बार.
नारी वास्तव में स्वतन्त्र है !
बंदी नहीं?
सच कहो
क्या आज भी
उस की सोच पे पाबन्दी नहीं?
आज भी
कहाँ उकेर पाती है
वह मन के उद्गार.
छीन लेते है वहीँ
उसकी तूलिका, उसकी लेखनी
उस के अपने मन के संस्कार.
और कभी स्व से संघर्ष कर निरंतर
वह अगर जीत भी जाती है,
तो इस तथाकथित प्रबुद्ध
और सुसभ्य समाज को
वह आँख की किरकिरी सी नज़र आती है.
समाज का पुरुषवादी अहम
उसकी यह परिवर्तित चेतना
नहीं कर पाता है स्वीकार
इसीलिए शायद इसीलिए
स्वयं से जीत कर भी
नारी अस्मिता जाती है हार
बार-बार.
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