10 दिसंबर 2011

रिश्तों की डोर

कितनी  नाजुक  है  यह  रिश्तों  की  डोर 
जरा सी लापरवाही से ही 
उलझ जाती है गाँठ बन कर.


और फिर सुलझती भी नहीं जल्दी-जल्दी.
पढ़ता है सुलझाना
बहुत ही हौले  से
बड़े ही यत्न से,धीरता से इसे .


क्योंकि 
और अधिक  जोराज़ोरी सेजरा सी खींचातानी से
यह और उलझ सकती है.
 बिल्कुल टूट  भी सकती है.

15 अगस्त 2011

स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !



कोटि-कोटि प्रणाम देश के वीरों को 
भारत के वीर सपूतों को रणधीरों को!




देश की रक्षा हेतु जिन्होंने गले लगाया
तोपों ,बन्दूकों को और शमशीरों  को

देश-प्रेम हित तज कर आते लगन का मंडप
भूल जाते हैं अपनी सोहनियों , हीरों को.

द्रास, कारगिल  या सियाचिन की हो सीमा
करने न देते पार किसी को लकीरों को

स्वयं विधाता आप बैठ कर लिखता है
स्वर्ण अक्षरों से उनकी तकदीरों को.

कोटि-कोटि प्रणाम देश के वीरों को 
भारत के वीर सपूतों को रणधीरों को!


5 मई 2011

गज़ल

धीरे धीरे तुम्हें भुलाना सीखेंगे .
अपने मन को भी समझाना सीखेंगे.

पढ़ पाए न कोई खुली किताबों सा 
चेहरे का हर भेद छुपाना सीखेंगे.


तुम भी करवट बदल बदल के रात बिताओ 
हम भी तेरी नीद उड़ाना सीखेंगे.


तुम्हे दिखायेंगे न मन के ताने बाने
खुद अपनी उलझन सुलझाना सीखेंगे.


बहुत सजाये 'पूनम' पलकों पे मोती 
अब होठों पे चाँद सजाना सीखेंगे.

21 मार्च 2011

तेरी याद

कुछ  फूल  मुरझाने  पर  भी ,

बरसों गुज़र जाने पर भी

नही छोड़ते  अपना चटख  रंग 

अपनी महक ,  अपनी सुगंध. 


तेरी याद की तरह .....



16 फ़रवरी 2011

क्या नारी स्वतन्त्र है ?


तुम्हें  क्या लगता है?
नारी वास्तव में स्वतन्त्र है !
बंदी नहीं?
सच कहो
क्या आज भी
उस की सोच पे पाबन्दी नहीं?

आज भी
कहाँ उकेर पाती है
वह मन के उद्गार.
छीन लेते है वहीँ
उसकी तूलिका, उसकी लेखनी
उस के अपने मन के संस्कार.

और कभी स्व से संघर्ष कर निरंतर
वह अगर जीत भी जाती है,
तो इस तथाकथित प्रबुद्ध
और सुसभ्य समाज को
वह आँख की किरकिरी सी नज़र आती है.

समाज का पुरुषवादी अहम
उसकी यह परिवर्तित चेतना
नहीं कर पाता है स्वीकार

इसीलिए शायद इसीलिए
स्वयं से जीत कर भी
नारी अस्मिता जाती है हार
बार-बार.