16 फ़रवरी 2011

क्या नारी स्वतन्त्र है ?


तुम्हें  क्या लगता है?
नारी वास्तव में स्वतन्त्र है !
बंदी नहीं?
सच कहो
क्या आज भी
उस की सोच पे पाबन्दी नहीं?

आज भी
कहाँ उकेर पाती है
वह मन के उद्गार.
छीन लेते है वहीँ
उसकी तूलिका, उसकी लेखनी
उस के अपने मन के संस्कार.

और कभी स्व से संघर्ष कर निरंतर
वह अगर जीत भी जाती है,
तो इस तथाकथित प्रबुद्ध
और सुसभ्य समाज को
वह आँख की किरकिरी सी नज़र आती है.

समाज का पुरुषवादी अहम
उसकी यह परिवर्तित चेतना
नहीं कर पाता है स्वीकार

इसीलिए शायद इसीलिए
स्वयं से जीत कर भी
नारी अस्मिता जाती है हार
बार-बार.