10 दिसंबर 2011

रिश्तों की डोर

कितनी  नाजुक  है  यह  रिश्तों  की  डोर 
जरा सी लापरवाही से ही 
उलझ जाती है गाँठ बन कर.


और फिर सुलझती भी नहीं जल्दी-जल्दी.
पढ़ता है सुलझाना
बहुत ही हौले  से
बड़े ही यत्न से,धीरता से इसे .


क्योंकि 
और अधिक  जोराज़ोरी सेजरा सी खींचातानी से
यह और उलझ सकती है.
 बिल्कुल टूट  भी सकती है.

2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक, सारगर्भित प्रस्तुति, सादर.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें.

    जवाब देंहटाएं

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए, बहुमूल्य समय निकालने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद!
आपकी प्रतिक्रिया मुझे बहुत प्रोत्साहन देगी....