29 सितंबर 2012

    ग़ज़ल 


मत समझो मुँह  न खोलेंगे 
हक छीनोगे तो बोलेंगे।


मत सोचो बिक जायेंगे
धन देख के हम न डोलेंगे।


साँपों को दूध पिलाओ न 
ये तो विष ही घोलेंगे।

उनसे मरहम की आशा?
वे तो जख्म टटोलेंगे .

खून बहा  निर्दोषों का 
कर  गंगाजल से धो लेंगे।

मन हल्का हो जाएगा 
खुल कर के जो रो लेंगे।