होंठो पे एक नाम रहता है अब
हर साँस मेरा श्याम कहता है अब
नासिका में नटवर की सुरभि बसी
सुन्दर छवि मन से जाये न कहीं
नजरें उठा के मैं देखूं जिधर
मोहन ही मुझको तो आता नज़र
जब भी चलूं संग मेरे चले
बैठे वह संग घने कदम्ब के तले
कानो में गूंजते हैं कान्हा के स्वर
बस गया मेरे उर में मुरलीधर
रोम-रोम में मेरे माधव समाया
अंग-संग मेरे सदा उसकी छाया
फिर क्यों विरह मुझको उसका सताए
इक पल भी उस बिन नहीं चैन आए
रातों को भी अब न लगती पलक
सपनों में भी सांवरे की झलक
उस का ही नूर, मुझ में उसी का सरूर
इतना समीप है वह फिर भी है दूर
व्याकुल हो जो मैं उसको पुकारूँ
बाट जोहूँ निसि दिन,रास्ता निहारूं
राधा खड़ी सोचे यमुना के तीर
कैसी है मीठी सी , यह 'बिरहा की पीर'
तन से भले दूर पर जुड़ी हुई मन से
जानती है वह अलग नही अपने मोहन से
कृष्ण दिल की धडकन तो राधा ही श्वास है
मोहन है प्रेम तो राधा विश्वास है।
मोहन है प्रेम तो राधा विश्वास है ।।
हर साँस मेरा श्याम कहता है अब
नासिका में नटवर की सुरभि बसी
सुन्दर छवि मन से जाये न कहीं
नजरें उठा के मैं देखूं जिधर
मोहन ही मुझको तो आता नज़र
जब भी चलूं संग मेरे चले
बैठे वह संग घने कदम्ब के तले
कानो में गूंजते हैं कान्हा के स्वर
बस गया मेरे उर में मुरलीधर
रोम-रोम में मेरे माधव समाया
अंग-संग मेरे सदा उसकी छाया
फिर क्यों विरह मुझको उसका सताए
इक पल भी उस बिन नहीं चैन आए
रातों को भी अब न लगती पलक
सपनों में भी सांवरे की झलक
उस का ही नूर, मुझ में उसी का सरूर
इतना समीप है वह फिर भी है दूर
व्याकुल हो जो मैं उसको पुकारूँ
बाट जोहूँ निसि दिन,रास्ता निहारूं
राधा खड़ी सोचे यमुना के तीर
कैसी है मीठी सी , यह 'बिरहा की पीर'
तन से भले दूर पर जुड़ी हुई मन से
जानती है वह अलग नही अपने मोहन से
कृष्ण दिल की धडकन तो राधा ही श्वास है
मोहन है प्रेम तो राधा विश्वास है।
मोहन है प्रेम तो राधा विश्वास है ।।