5 दिसंबर 2014

कविता

औरों से अब मत
दया की भीख ले
अपना बनता हक
छीनना सीख ले.

अब चुप रहना
निर्बलता मानी जाती है
क्रोधित स्वर की शक्ति
पहचानी जाती है.

शांति और अहिंसा के
आयाम हैं बदले
जीवन-मूल्य भी बदले,
उनके नाम भी बदले .

समय के परिवर्तन से
तुम्हें बदलना होगा
छोड़ पुरानी राह
नयी पे चलना होगा.

                डॉ. पूनम गुप्त

1 टिप्पणी:

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